By अजय कुमार | Jan 29, 2024
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था कि वह जनवरी के अंत तक गठबंधन में सीटों का बंटवारा कर देंगे। अखिलेश ने ऐसा किया भी। गत सप्ताह के अंत में उन्होंने एक्स पर पोस्ट करके कहा कि कांग्रेस को 11 सीटें देने के साथ समझौता हो गया है, लेकिन इसके तत्काल बाद ही कांग्रेस की प्रतिक्रिया आई और उसने साफ कह दिया कि वह इतनी सीटों पर राजी नहीं है। अब आगे क्या होगा, यह भी जल्द तय हो जायेगा। यदि कांग्रेस इतने पर नहीं मानी तो यूपी में भी इंडी गठबंधन टूट सकता है। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए बना इंडी गठबंधन उत्तर भारत में हासिये पर पहुंच गया है। पश्चिम बंगाल और बिहार में इंडी गठबंधन की ’रीढ़’ टूट चुकी है। आम आदमी पार्टी का रुख भी पंजाब को लेकर ऐसा ही नजर आ रहा है। अब बस उत्तर प्रदेश बचा है, लेकिन यहां भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी कांग्रेस के ढुलमुल रवैये से असहज महसूस कर रहे हैं। वहीं बसपा तो बाहर थी ही। बात जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की कि जाये तो अखिलेश ने उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सात लोकसभा सीटें समझौते के तहत दे दी हैं। इसी के साथ समाजवादी पार्टी ने अपने हिस्से की भी करीब-करीब सभी सीटों पर अपने प्रत्याशियों की तलाश तेज कर दी है। कुछ सीटों पर उम्मीदवार तय भी हो गये हैं। इंडी गठबंधन का हाल यह है कि यूपी में समाजवादी पार्टी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से किनारा करके पीडीए यात्रा चला रखी है। उन्हें लगता है कि पीडीए ही एनडीए को हराएगी। हालात यह हैं कि समाजवादी पार्टी ने यहां तक घोषणा कर दी है कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा के उत्तर प्रदेश से गुजरने के दौरान पार्टी नेता उसमें शिरकत नहीं करेंगे।
अखिलेश की बातों से लग रहा है कि वह भी नीतीश कुमार और ममता बनर्जी की तरह इंडी गठबंधन से दूरी बनाने का फैसला कभी भी ले सकते हैं, लेकिन अखिलेश ने अभी तक इंडी गठबंधन के खिलाफ मुंह नहीं खोला है। अखिलेश यादव यह जरूर कह रहे हैं कि कांग्रेस को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। ममता बनर्जी को मनाएं और साथ में लें। साथ ही छोटे-छोटे दलों को भी साथ में रखें। नीतीश के इंडी गठबंधन से बाहर जाने से अखिलेश थोड़ा असहज जरूर हैं, लेकिन उनके पारिवारिक संबंध लालू के परिवार से होने के कारण वह (अखिलेश) नीतीश के साथ खड़ा नजर नहीं आना चाहते हैं। परंतु ममता बनर्जी का इंडी गठबंधन से दूरी बनाना अखिलेश को बिल्कुल भी रास नहीं आ रहा है। इसकी वजह ममता बनर्जी और अखिलेश के बीच अच्छी कैमिस्ट्री होना है।
दरअसल, अखिलेश यादव कई बार इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका को लेकर अपनी निराशा जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने साफ कह दिया कि नीतीश की पहल पर ये गठबंधन बना था लेकिन कांग्रेस ने इसे लेकर कोई तत्परता नहीं दिखाई। अगर नीतीश इंडिया गठबंधन में रहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे। गौरतलब है कि इंडिया गठबंधन का जब ऐलान हुआ तो यूपी से राष्ट्रीय लोकदल के साथ समाजवादी पार्टी इसमें शामिल हुई थी, लेकिन समय बीतने के साथ कांग्रेस और अखिलेश यादव के रिश्ते बिगड़ते गए। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनावों में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और सपा के बीच तनातनी सब ने देखी थी।
बात लोकसभा चुनाव की कि जाये तो चुनाव में अब तीन महीने का समय बचा है लेकिन लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग फार्मूला भी तय नहीं हो पा रहा है। दरअसल कांग्रेस चाहती है कि यूपी में 2009 के उसके प्रदर्शन के आधार पर उसे सीटें दी जाएं, जबकि अखिलेश इस पर राजी नहीं हैं। सपा की तरफ से पहले ही संदेश दिया जा चुका है कि यूपी में वह ही प्रमुख विपक्षी पार्टी है और जो भी सीटें दी जाएंगीं, वह उसे अपने पास से ही देगी। दूसरी तरफ यूपी कांग्रेस का रुख भी समाजवादी पार्टी से अलग अपनी राह बनाने का दिख रहा है। वह सपा के कंधे पर रख कर बंदूक चलाना चाहती है। हाल यह है कि एक तरफ कांग्रेस में प्रदेश भर में यात्राएं कर जनाधार मजबूत करने की कवायद चल रही है, वहीं दूसरी तरफ अयोध्या में सरयू स्नान के जरिये भी संदेश देने की कोशिश की गयी। वहीं सपा और कांग्रेस के बीच एक-दूसरे के लिए तल्ख बयानबाजी भी सामने आ रही है। पार्टी के नेताओं द्वारा कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठाये जा रहे हैं, हालांकि अखिलेश यादव सीधे-सीधे कुछ भी कहने से बचते रहे हैं।
कुल मिलाकर अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन की ताजा स्थिति का लेकर कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की पहल पर भी गठबंधन को बनाया गया था, लेकिन पहली बैठक में ही कांग्रेस ज्यादा तत्पर नहीं दिखी। हालांकि अखिलेश यादव ने ये भी साफ कर दिया है कि वह प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हैं, लेकिन यूपी में कांग्रेस के राहुल गांधी के साथ वह प्रचार करेंगे या नहीं इस पर उन्होंने बात समय पर छोड़ दी है।
बात यूपी में गठबंधन की सियासत की करते हुए पिछले कुछ वर्षों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि यूपी में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन होता रहता है। कभी कांग्रेस-सपा हाथ मिलाते हैं तो कभी पुरानी दुश्मनी भूलकर माया-अखिलेश एक हो जाते हैं। बात आगामी लोकसभा चुनाव के लिए इंडी गठबंधन की कि जाये तो अखिलेश के कांग्रेस के साथ आने से कांग्रेस को ही फायदा होगा। वर्तमान में सिर्फ रायबरेली की ही सीट कांग्रेस के पास है। समाजवादी पार्टी से सीट शेयरिंग होती है तो कहीं न कहीं कांग्रेस को उसके वोट बैंक का लाभ मिलेगा। वहीं अगर गठबंधन नहीं होता है तो कांग्रेस के लिए राहें आसान नहीं हैं। जमीन पर संगठन की उपस्थिति न के बराबर है। कांग्रेस के पास नेताओं की भी कमी है।
उधर, भाजपा का संगठन इस समय सबसे मजबूत स्थिति में है। रायबरेली में भी इस बार कांग्रेस के लिए आसान मुकाबला होने नहीं जा रहा। वहीं बसपा भी बेहद कमजोर स्थिति में है। सपा के साथ गठबंधन के चलते ही वह 2019 में 10 सीटें जीत सकी थी। बसपा का हाल ये है कि उसका विधानसभा में सिर्फ एक विधायक है। मुस्लिम मतदाता पिछले विधानसभा चुनावों में अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं कि वह सपा के ही साथ हैं। ऐसे में सीट शेयरिंग की कमान अखिलेश यादव के पास ही है।
खैर, समय और जरूरत के हिसाब से राजनेताओं को अपना चाल-चरित्र-चेहरा बदलते हुए देखना भले ही देश की जनता को अच्छा नहीं लगता हो, लेकिन नेताओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह जानते हैं कि जनता की याद्दाश्त काफी कमजोर होती है, वह कोई बात ज्यादा समय तक याद नहीं रखती है। इसी का फायदा हमारे नेता उठाते हैं। आज की तारीख में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं। जनता दल युनाइटेड के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तो पलटूराम तक की संज्ञा दी जाती है। इस कड़ी में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का नाम भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। आज समाजवादी नेता भले राम नाम की माला जप रहे हों, लेकिन उनकी पार्टी का दामन कारसेवकों के खून से सना है, यह बात भी भूली नहीं जा सकती है। अखिलेश की सियासत भी ऐसे ही नजर आ रही है जिसको लेकर बीजेपी तो उन पर हमलावर है ही, सपा के साथ खड़े दलों के नेता भी अखिलेश को आईना दिखा रहे हैं।
-अजय कुमार